हम जीवन से शुरुआत करते हैं।
जीवन क्या है? जीवन का अर्थ क्या है? जीवन की शुरुआत कैसे होती है और जीवन का अंत कैसे होता है?
सबसे पहले, हम इन प्रश्नों के उत्तर तर्क के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।जीवन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो कभी समाप्त नहीं होती।जीवन शाश्वत है। जीवन सत्य है। जीवन ही सभी कार्यों का मूल आधार है।हम सभी के पास जीवन है, परंतु हम इसके महत्व को नहीं समझते। हम अपने शरीर को ही जीवन मानते हैं, जबकि वास्तव में जीवन और शरीर अलग-अलग हैं।इन दोनों में भेद है, इसलिए पहले हम समझते हैं कि शरीर और जीवन में क्या अंतर है।शरीर का निर्माण जीवन शक्ति द्वारा ही होता है, फिर भी दोनों में अंतर है।आइए पहले जानते हैं कि शरीर क्या है।जीवन शक्ति ही शरीर का निर्माण करती है और इसके निर्माण के लिए अनुकूल परिवेश तैयार करती है।धरती पर तीन प्रकार के शरीर पाए जाते हैं:
पहला प्रकार – वे शरीर जो नर-मादा के संभोग से बनते हैं, जैसे कि इंसान, जानवर और पक्षी।
दूसरा प्रकार – वे शरीर जिनमें नर-मादा का भेद नहीं होता और जो स्वयं बीज का निर्माण करते हैं, जैसे कि पेड़-पौधे।
तीसरा प्रकार – वे शरीर जो स्वतः उत्पन्न होते हैं, बिना संभोग के, जैसे कि कीड़े-मकोड़े। ये धरती के भीतर स्वयं पैदा होते हैं और इनका जीवन चक्र बहुत छोटा होता है।
मानव शरीर का निर्माण नर-मादा के संभोग से होता है।
जीवन शक्ति ही शरीर का निर्माण करती है, वही इसे संचालित करती है और समय आने पर वही इसका अंत करती है।शरीर बनता है और नष्ट होता है, लेकिन जीवन का कभी अंत नहीं होता। जीवन निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है – जिसका ना कोई आरंभ है और ना कोई अंत।जीवन एक ऐसी शक्ति है जो सर्वशक्तिमान है, जिसका कोई अंत नहीं।
वही शक्ति जीवन है। वह शक्ति ही इस संसार को संचालित करती है और हम सभी के शरीर पर नियंत्रण रखती है।
जीवन ही प्रकृति का दूसरा नाम है।
जीवन वह शक्ति है जिसने समस्त ब्रह्मांड का निर्माण किया है।हर शरीर की एक निश्चित आयु होती है।
उस आयु के बाद वह शरीर नष्ट हो जाता है, लेकिन जीवन की कोई आयु नहीं होती, इसलिए वह कभी नष्ट नहीं होता।शरीर के निर्माण से लेकर नष्ट होने तक एक प्रक्रिया होती है, जो आरंभ से अंत तक चलती है।
लेकिन जीवन का कोई निर्माण नहीं होता — वह आदि है, वह सदा है।हम अक्सर शरीर और जीवन को एक ही मानते हैं, क्योंकि हमारे भीतर आत्म-चेतना की कमी है। हमारे पास जो ज्ञान है, उसी के आधार पर हम शरीर और जीवन में भेद नहीं कर पाते,इसलिए हम दोनों को एक ही समझते हैं।दूसरा कारण यह है कि शरीर हमें दिखाई देता है, लेकिन शरीर के भीतर स्थित जीवन हमें दिखाई नहीं देता।
हम जीवन को केवल अनुभव कर सकते हैं —
हम अपनी आँखों से जीवन को देख नहीं सकते।हमें यह अनुभव होता है कि हमारे शरीर के भीतर कोई शक्ति है
जो हमारे शरीर को नियंत्रित कर रही है, लेकिन हम उस शक्ति को देख नहीं सकते,क्योंकि हमारे पास आत्म-चेतना नहीं है।बिना आत्म-चेतना के आत्म-चक्षु नहीं खुलते।हम सभी मनुष्य यह मानते हैं कि हमारे शरीर के भीतर एक शक्ति है जो हमारे शरीर पर पूर्ण नियंत्रण रखती है,
लेकिन हम उसे पहचान नहीं पाते, जान नहीं पाते, समझ नहीं पाते,
क्योंकि आत्म-चक्षु के बिना हम उसे देख नहीं सकते।आत्म-चक्षु तभी खुलते हैं जब हमें आत्म-ज्ञान की अनुभूति होती है।हमारा शरीर जन्म लेने के बाद निरंतर बढ़ता रहता है।
शरीर का विकास होता रहता है, लेकिन एक निश्चित आयु के बाद शरीर का पतन प्रारंभ हो जाता है।चाहे हम कितनी भी कोशिश कर लें, चाहे जितना भी विकसित हो जाएं,
l हमारा शरीर एक न एक दिन नष्ट अवश्य होगा।क्योंकि हमारे भीतर जो शक्ति है, वह सर्वशक्तिमान है।
उससे बड़ी कोई शक्ति ब्रह्मांड में नहीं है।आज हम जिस परिवेश में रह रहे हैं, उसमें विज्ञान ने बहुत उन्नति की है,
लेकिन आज तक विज्ञान मृत्यु का कोई समाधान नहीं निकाल पाया है।
जितने भी महान वैज्ञानिक हुए, वे सभी मृत्यु को प्राप्त हुए हैं।ऐसा कोई वैज्ञानिक नहीं हुआ जिसने मृत्यु पर विजय पाई हो।मृत्यु पर विजय वही प्राप्त कर सकता है
जिसने अपने भीतर आत्म-ज्ञान प्राप्त कर लिया हो।जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि जीवन ही शरीर का निर्माण करती है,
और समय आने पर जीवन ही शरीर को नष्ट कर देती है।
जीवन अमर है, परंतु शरीर नश्वर है।
शरीर कभी अमर नहीं हो सकता।आज हमारे पास मानव जाति का हजारों वर्षों का इतिहास उपलब्ध है।
इस इतिहास में ऐसा कोई शरीर नहीं है जो एक निश्चित आयु के बाद नष्ट न हुआ हो।मानव इतिहास में अनेक महापुरुष हुए,
अनेक ज्ञानीजन हुए,
लेकिन उन सभी ने अपना शरीर त्यागा,
क्योंकि जीवन शक्ति के नियम के आगे कोई भी नियम स्थायी नहीं है।जीवन शक्ति का नियम है:
जो वस्तु बनी है वह एक निश्चित समय के बाद नष्ट होगी।
और यही जीवन शक्ति का परम सत्य है।अब हम आगे जानेंगे कि जीवन शक्ति क्या है और इसका निर्माण कैसे हुआ।